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सेवा का अधिकार आयोग में कमिश्नर की नियुक्ति प्रक्रिया पर नेता प्रतिपक्ष आर्या ने खड़े किए सवाल, लगाया यह आरोप

ByReporter

Aug 29, 2022

देहरादून।उत्तराखण्ड ‘‘ सेवा का अधिकार आयोग” में कमिश्नर के पद पर नियुक्ति प्रक्रिया मामले में उत्तराखंड के नेता प्रतिपक्ष व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता यशपाल आर्या ने सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि इस पद पर बिना नेताप्रतिपक्ष के सलाह पर नियुक्ति कर दी गयी। आरोप लगाया कि नियुक्ति की प्रक्रिया और तरीके को देखकर यह लगता है कि सरकार ने अपनी सारी शक्तियां नौकरशाहों के हाथों में दे दी हैं, जो उनका प्रयोग सेवानिवृृत्त हो रहे नौकरशाहों के हितों को साधने के लिए करते हैं।
यशपाल आर्या का कहना है कि सेवा का अधिकार अधिनियम 2011 की धारा 13(1) और 2014 के संशोधित अधिनियम के अनुसार आयोग के मुख्य आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्ति राज्य सरकार को नेता प्रतिपक्ष से सलाह लेकर करनी चाहिए। राज्य सरकार का मतलब सामूहिक निर्णय लेते समय कैबिनेट से और महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय लेते समय मुख्यमंत्री से होता है। उत्तराखण्ड सहित सभी राज्यों में संवैधानिक पदो और अधिनियमों में उल्लेखित नियुक्तियों को करने से पूर्व , मुख्यमंत्री , नेता प्रतिपक्ष और अन्य सदस्यों जिनमें नियमानुसार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आदि होते हैं, द्वारा बैठक कर व्यापक विचार- विमर्श के बाद ही नियुक्ति को अंतिम रुप दिया जाता है।
उन्होंने बताया कि सेवा का अधिकार आयोग में कमिश्नर के के पद पर नियुक्ति मामले में सचिव कार्मिक ने 27 जून 2022 को मेरे निजी सचिव को एक पत्र भेजकर यह उल्लेखित करते हुए सलाह मांगी कि , आयुक्त पद पर भूपाल सिंह मनराल की चयन प्रक्रिया गतिमान है , ऐसे में वह 10 दिन में सलाह भेजें । लेकिन पत्र भेजने के 9 वें दिन भूपाल सिंह मनराल की नियुक्ति आयुक्त पद पर कर दी गयी। राज्य सरकार ने इस पत्र के साथ न कोई पैनल भेजा , न ही नियुक्त होने वाले व्यक्ति का बायो डाटा। यही नही सेवा रिकार्ड , गोपनीय जांच रिकार्ड या उसकी योग्यताऐं भी नहीं भेजी, ऐसे में बिना कुछ दस्तावेजो के मैं कैसे कोई सलाह दे सकता था। फिर सचिव किसी भी हाल में सरकार नहीं हो सकता है। मेरा किसी व्यक्ति से विरोध नहीं है,लेकिन लोकतंत्र में मान्य परम्पराओं से हटना उचित नहीं माना जा सकता है। मेरा साफ – साफ आरोप है कि ,अल्प ज्ञान के कारण राज्य सरकार ने स्वयं को नौकरशाहों के हाथ गिरवी रख दिया है। उत्तराखण्ड में शासन ही अब सरकार है। मुख्यमंत्री और कैबिनेट की शक्तियां नौकरशाहों के हाथों में निहित हो गई हैं। ऐसे में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का कोई औचित्य नहीं रह गया है।
मेरा मानना है राज्य सेवा के अधिकार आयोग, राज्य के विभागों के विरुद्ध शिकायतें सुनता है। वर्तमान में मुख्य आयुक्त के रुप में एक पूर्व नौकरशाह और आयुक्त के रुप में पूर्व पुलिस अधिकारी नियुक्त हैं। यह आशा करना निरर्थक है कि , जीवन भर सरकारी सेवा कर चुका व्यक्ति अपने ही पूर्व विभागों की अर्कमण्यता की शिकायतों को सुन कर सही निर्णय देगा। इसलिए मेरा मानना है कि , ऐसे आयोग में अन्य सेवाओं जैसे न्यायिक सेवा , पत्रकारिता, समाज सेवा , शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सेवाओं से संबधित व्यक्ति भी आयुक्त के रुप में नियुक्त होने चाहिए थे। लेकिन राज्य के नौकरशाहों ने मुख्यमंत्री के विवेक की शक्ति का प्रयोग स्वयं कर एक नौकरशाह को नियुक्ति दे दी।
मेरी राज्य सरकार को सलाह है कि , उसे यदि ऐसे निर्णय लेने हैं तो नेता प्रतिपक्ष को इन निर्णयों से दूर रखने के लिए कानून में संशोधन करना चाहिए। इन संशोधनों को करने के लिए उसके पास पूरा बहुमत है। लेकिन मेरे सहित कोई भी लोकतांत्रिक व्यक्ति शासन को सरकार नहीं मानेगा। मेरा यह भी मानना है कि , जनता द्वारा दी गई शक्तियों का प्रयोग भी माननीय मुख्यमंत्री जी , कैबिनेट और सरकार को ही करना चाहिए।

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