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अल्मोड़ा की एक बेटी जो बनी पाकिस्तान की मादर-ए -वतन , जानिए पूरी कहानी….

ByReporter

Aug 11, 2022


अल्मोड़ा। बेगम राना लियाकत अली खान यानि पाकिस्तान की प्रथम महिला, जिन्हें पाकिस्तान की मादर-ए-वतन के नाम से भी जाना जाता है, क्या आपको मालूम है कि वह उत्तराखण्ड से ताल्लुक रखती थी। जी हां बेगम राना लियाकत अली खान का जन्म अल्मोड़ा में आइरिन पंत के रूप में हुआ था। आइरिन पंत के दादा जी ने मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाइ धर्म अपना लिया था। उससे पहले यह परिवार अल्मोड़ा के उच्च ब्राहमण जाति के पंत परिवार से ताल्लुक रखते थे। आइरिन पंत का जन्म 1905 में अल्मोड़ा में स्व. डेनियल पंत के घर हुआ था। आइरिन पंत का शुरूआती बचपन अल्मोड़ा में ही गुजरा। बाद में वह लखनऊ चली गई , लखनऊ के लालबाग स्कूूल से पढ़ाई के बाद उन्होंने लखनऊ के मशहूर आईटी काॅलेज से पढ़ाई की।
इतिहासकार वी.डी.एस. नेगी के अनुसार लखनऊ आईटी काॅलेज में पढ़ाई के दौरान ही आइरिन पंत की मुलाकात अविभाजित भारत में मंत्री रहे लियाकत अली खान से हुई। जिसके बाद वह दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बन गई । लियाकत अली खान से एक समारोह में फिर मुलाकात हुई और नजदीकियां बढ़ने लगी । बाद में उन्होंने 1931 में एक दूसरे से शादी कर ली। भारत का विभाजन होने के बाद लियाकत अली खान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने और उन्हें पाकिस्तान की प्रथम महिला होने का गौरव प्राप्त हुआ।
अल्मोड़ा के मैथोडिस्ट चर्च के ठीक नीचे स्थित आइरिन पंत के पुस्तैनी मकान आज भी आइरिन पंत की यादों को ताजा किए हुए हैं। आज इस मकान में उनके भाई नाॅर्मन पंत की बहू मीरा पंत और उनका पोता राहुल पंत रहते हैं। उनकी बहु मीरा पंत बताती हैं कि आइरिन पंत बहुत की साहसी लेडी थी। उनके बारे में उन्होंने सुना है कि जब वह लखनऊ के आईटी काॅलेज से पढ़ाई कर रही थी, तो उसी समय बिहार में बाढ़ आ गई। बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए वह नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर उनके लिए फंड जुटाने का काम कर रही थी। उसी दौरान अपने एक समारोह के लिए उन्होंने अविभाजित भारत में तत्कालीन मंत्री रहे लियाकत अली खान को कार्यक्रम में आने के लिए टिकट खरीदने का निमंत्रण दिया था। वह बड़ी मुश्किल से एक टिकट खरीदने के लिए राजी हुए लेकिन आइरिन पंत ने कहा कि कम से 2 टिकट तो खरीदिए किसी को अपने साथ लाइए। इस पर लियाकत अली खान ने कहा कि वह किसी को नहीं जानते।तभी आइरिन पंत ने कहा कि अगर आपके साथ बैठने लिए कोई नहीं होगा, तो मैं आपके साथ बैंठूंगी। जिसके बाद उनकी नजदीकी बढ़ी फिर वह दिल्ली के इंद्रप्रस्थ काॅलेज में ईकोनाॅमिक्स की प्रोफसर बन गई। बाद में उन्होने लियाकत अली खान से शादी कर ली।
उनके पोते राहुल पंत कहते हैं कि उनकी यादें आज भी अल्मोड़े में हैं। वह कहते हैं कि आइरिन पंत के बारे में उन्होंने सुना है कि अपने उस दौर की बहुत साहसी लड़की थी। उनका बचपन अल्मोड़ा में ही बीता। उस दौर में वह महिला होकर अल्मोड़ा में साइकिल दौड़ाती थी। वह बताते हैं कि उनको उत्तराखण्डी पहाड़ी ब्यंजनों का बड़ा शौक था। शादी की बाद जब भी वह भारत आई हालांकि एक बार भी अल्मोड़ा नहीं आ पाई, लेकिन उनके दादा नाॅर्मन पंत को वह लगातार चिठ्ठी लिखा करती थी और अल्मोड़ा को याद करते रहती थी। वह बताते हैं कि मानव संसाधन मंत्री रहे मुरली मनोहर जोशी का मकान भी उनके बगल में ही हुआ करता था। जब भी वह अल्मोड़ा आते थे तो पूछते थे कि आइरिन पंत के परिवार वालों के हालचाल क्या हैं।
अल्मोड़ा नगर पालिका के अध्यक्ष एवं शहर के वरिष्ठ नागरिकों में शुमार प्रकाश चन्द्र जोशी बताते हैं कि आइरिन पंत के परिवार वालों का मकान मैथोडिस्ट चर्च के करीब था। जिस कारण बताया जाता है कि उनके प्रभाव में आकर ही उनके दादा तारादत्त पंत ने 1874 में ब्राहमण होकर भी ईसाई धर्म अपना लिया था। वह बताते हैं कि उस दौर में पंत परिवार वह भी ऊॅची धोती वाले ब्राहमण परिवार द्वारा ईसाई धर्म अपनाने से यहां लोगों में खलबली मच गई। इससे पूरे कुमाऊॅ मे उस दौर में एक तहलका मच गया। हालांकि धीरे धीरे सब नाॅर्मल हो गया, लेकिन उस समय यह लोगों के लिए बड़ी बात होती थी। उनके समुदाय ने इसको इतना बुरा माना था कि उन्हें घटाश्राद्ध की रीति के द्वारा मृत घोषित कर दिया गया।
बेगम लियाकत अली खान की आधी जिंदगी भारत में गुजरी और आधी जिंदगी पाकिस्तान में। वह बचपन से खुले विचारों वाली महिला के रूप में जानी जाती थी। पाकिस्तान में जाने के बाद उन्होंने मानवाधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने वहां महिलाओं के अधिकारों और उनके सशक्तीकरण के लिए आवाजें उठायी, वहां मौजूद कट्टरपंथियों के खिलाफ आवाज उठाई। वह पाकिस्तान की प्रथम महिला गर्वनर रही, वहीं करांची यूनिवर्सिटी की पहली महिला वाईस चांसलर बनी। इसके अलावा वह नीदरलैंड, इटली, टयूनिशिया में पाकिस्तान की राजदूत रही। उन्हें 1978 में संयुक्त राष्ट्र ने ह्यूमन राईट्स के लिए सम्मानित भी किया गया।

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